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Thursday, September 22, 2011

ptra pujan

पितृ हमारे वंश को बढ़ाते है, पितृ पूजन करने से परिवार में सुख-शांति, धन-धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है। संतान का सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं।

शास्त्रों में पितृ को पितृदेव कहा जाता है। पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में प्रथम किया जाता है। जो कि नां‍दी श्राद्ध के रूप में किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (क्वांर) की अमावस्या तक के समय को शास्त्रों में पितृपक्ष बताया है। इन 16 दिनों में जो पुत्र अपने पिता, माता अथवा अपने वंश के पितरों का पूजन (तर्पण, पितृयज्ञ, धूप, श्राद्ध) करता है। वह अवश्य ही उनका आशीर्वाद प्राप्त‍ करता है।

इन 16 दिनों में जिनको पितृदोष है वह अवश्य त्रि-पिंडी श्राद्ध अथवा नारायण बली का पूजन किसी तीर्थस्थल पर कराएं। काक भोजन कराएं, तो उनके पितृ सद्‍गति को प्राप्त हो, बैकुंठ में स्थान पाते हैं।

इन दिनों में किया गया श्राद्ध अनन्य कोटि यज्ञ के बराबर फल देने वाला होता है।

माता-पितामही चैव तथैव प्रपितामही।
पिता-पितामहश्चैव तथैव प्रतितामह:।।
माता महस्तत्पिता च प्रमातामहकादय:।
ऐते भवन्तु सुप्रीता: प्रयच्छतु च मंगलम।।
अपने पिता-पितामह, माता, मातामही, पितामही, माता के पिता, मातृ पक्ष, पत्नी के पिता, अपने भाई, बहन, सखा, गुरु, गुरुमाता का श्राद्ध मंत्रों का उच्चारण कर विधिवत‍ संपन्न करें। ब्राह्मण का जोड़ा यानी पति-पत्नी को भोजन कराएं। पितृ अवश्य आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

पितृ पक्ष में मन चित्त से पितरों का पूजन करें।

पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:।
पितामहैभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा:नम:।
प्रपितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा:नम:।
अक्षन्पितरो मीम-दन्त पितेरोतीतृपन्त
पितर: पितर: शुध्वम्।
ये चेह पितरों ये च नेह याश्च विधयाश्च न प्रव्रिध।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेद:
स्वधाभिर्यज्ञ: सुकृत जुषस्व।

इन यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण कर पितरो का पूजन करे ! आपके पितृ  बेकुंढ़ में निबास करेगे!

इन दिनों में किया गया श्राद्ध अनन्य कोटि यज्ञ के बराबर फल देने वाला होता है।


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