प्रथम लेख में आपने देखा राहू का ध्दितीय भाव तक राहू का कुंडली में रहने पर जातक पर शुभ -अशुभ
प्रभाव! आगे देखे अन्य भाव में राहू का प्रभाव !
तृतीय भाव -->राहू जातक की कुंडली में तृतीय भाव में हो, तो योग्याभासी , विवेक को बनाये रखने वाला , प्रवासी ,
पराक्रम शून्य, अरिष्ट्नाशक के साथ बलवान, विद्वान एवं अच्छा व्यवसायी होता है !
चतुर्थ भाव --> राहू जातक की कुंडली मे चतुर्थ भाव में रहने पर असंतोष, दुखी, क्रूर एवं मिथ्याचारी (झूट पे चलने वाला) काम बोलने वाला बनाता है ! इसी के साथ पेट की बीमारी बनी रहती है एवं माता को कष्ट रहता है !
पंचम भाव--> राहू जातक की कुंडली मे पंचम भाव मे रहने पर भाग्यशाली बनाता है !शास्त्र को समजने वाला होता है ! परन्तु इसी के साथ मन्दबुध्दी हो सकता है! एवं धनहीन, कुटुंब का धन समाप्त करने वाला निकलता है !
षष्टम भाव --> जातक की कुंडली मे राहू षष्टम भाव मे रहता है ,तो जातक निरोगी, पराक्रमी एवं बड़े -बड़े कार्य करने
वाला रहता है !जातक अरिष्ट निवारक के साथ शत्रुहंता एवं कमरदर्द से पीडित रहता है !
सप्तम भाव --> जातक की कुंडली मे राहू सप्तम भाव मे रहता है तो व्यापार मे जातक को हानि, एवं बात रोग होता है !दुष्कर्म की प्रेरणा, चतुर के साथ लोभी एवं दुराचारी बनाता है! सबसे ज्यादा प्रभाव गृहस्त पर पड़ता है !श्त्री कष्ट अथवा स्त्रिनाशक बनाता है !
अष्टम भाव--> जातक की कुंडली मे राहू अष्टम भाव मे जातक को हस्तपुष्ट बनाता है! जातक गुप्तरोगी होता है ,व्यर्थ भाषण करने वाला, मुर्ख के साथ क्रोधी, उद्र्रोगी, एवं कामी होता है!
नवम भाव-->जातक की कुंडली मे राहू नवम भाव मे जातक को तीर्थ करने वाला एवं धर्मात्मा बनाता है !परन्तु इसके विपरीत परिणाम भी देता है! प्रवासी वातरोगी व्यर्थ परिश्रमी के साथ दुष्ट प्रवति का बनाता है !
No comments:
Post a Comment