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Tuesday, December 28, 2010

tantr-- mantr--yantr

                  मनुष्य की जिज्ञासा हमेशा स्वस्थ्य रहने की रहती है! करे कुछ सिध्द  प्रयोग एवं रहे स्वस्थ्य आप भी
एवं अपने परिवार को भी स्वस्थ्य रखे!
                                जादू-- टोना-- निवारण मन्त्र
      ॐ काकलक-कपाल बज्र पर्वत लंक अलग-पलन्का !
       फलक फलीक यती की वाचा गुरु की सोचा सत्यों !
                कोई व्यक्ति जादू टोने से ग्रस्त है, एवं स्वस्थ्य नही रहता है! तो उपरोक्त मन्त्र का प्रयोग करे ! किसी नये वस्त्र का टुकड़ा लेकर रेंडी के तेल में तर करे!  एक थाली में पानी भरकर रखे, तेल में तर कपड़े को किसी चिमटे आदि से पकडकर रोगी के सिर से पाँव तक साथ बार उतारे एवं जलाएं व थाली के उपर कर लें ! जलते हुए तेल की बुँदे थाली के पानी में गिरनी चाहिये ! जब तक कपड़ा जलता रहे, उपयुक्त मन्त्र को पदते रहे जब तेल टपकनाबंद हो जाये ! तो उसे उसी पानी में बुझा दें! फिर इक्कीस बार -मन्त्र पढकर रोगी को फूंक मारे! इस किर्या से व्यक्ति सभी प्रकार के जादू टोने के दुष्प्रभाव से मुक्त हो जायेगा !         
     

Thursday, December 23, 2010

rahu ka dhdash bhavo me fal

             पिछले लेखो में आपने राहू का कुंडली में नवम भाव तक जातक पर प्रभाव देखा, आगे दशम भाव से ---ध्दाद्श -भाव तक राहू के रहने पर जातक पर शुभ -अशुभ प्रभाव देखिये!
दशम भाव -->राहू कुंडली  में दशम भाव में हो, तो जातक को लाभ देता है! कार्य सफल करने के साथ -साथ --
व्यवसाय कराता है! परन्तु मन्दमति, लाभहीन, अल्प्-संतति, अरिष्ट-नाशक भी बनाता है!
एकादश भाव -->राहू कुंडली  में एकादश भाव में हो, तो अनियमित कार्यकर्ता, मितव्ययी, अच्छा वक्ता बनाता है!
इसी के साथ आलसी, क्लेशी एवं चन्द्रमा से युक्ति हो, तो राजयोग दिलाता है!
ध्दाद्श भाव -->राहू कुंडली में ध्दाद्श भाव में हो, तो चिन्ताशील एवं विवेकहीन बनाता है!जातक परिश्रमी, सेवक के साथ कामी होता है, मुर्ख जैसा व्यवहार करता है!

Wednesday, December 22, 2010

rahu ka dhdash bhavo me fal

             प्रथम लेख में आपने देखा राहू का ध्दितीय भाव तक राहू का कुंडली में रहने पर जातक पर शुभ -अशुभ
प्रभाव! आगे देखे अन्य भाव में राहू का प्रभाव !
तृतीय भाव -->राहू जातक की कुंडली में तृतीय भाव में हो, तो योग्याभासी , विवेक को बनाये रखने वाला , प्रवासी ,
पराक्रम शून्य, अरिष्ट्नाशक के साथ बलवान, विद्वान एवं अच्छा व्यवसायी होता है !
चतुर्थ भाव --> राहू जातक की कुंडली मे चतुर्थ भाव में रहने पर असंतोष, दुखी, क्रूर एवं मिथ्याचारी (झूट पे चलने वाला) काम बोलने वाला बनाता है ! इसी के साथ पेट की बीमारी बनी रहती है एवं माता को कष्ट रहता है !
पंचम भाव-->  राहू जातक की कुंडली मे पंचम भाव मे रहने पर भाग्यशाली बनाता है !शास्त्र को समजने वाला होता है ! परन्तु  इसी के साथ मन्दबुध्दी हो सकता है! एवं धनहीन, कुटुंब का धन समाप्त करने वाला निकलता है !
षष्टम भाव --> जातक की कुंडली मे राहू षष्टम भाव मे रहता है ,तो जातक निरोगी, पराक्रमी एवं बड़े -बड़े कार्य करने
वाला रहता है !जातक अरिष्ट निवारक के साथ शत्रुहंता एवं कमरदर्द से पीडित रहता है !
सप्तम भाव --> जातक की कुंडली मे राहू सप्तम भाव मे रहता है तो व्यापार मे जातक को  हानि, एवं बात  रोग होता है !दुष्कर्म की प्रेरणा, चतुर के साथ लोभी एवं दुराचारी बनाता है! सबसे ज्यादा प्रभाव गृहस्त पर पड़ता है !श्त्री कष्ट अथवा स्त्रिनाशक बनाता है !
अष्टम भाव--> जातक की कुंडली मे राहू अष्टम  भाव मे जातक को हस्तपुष्ट  बनाता है! जातक गुप्तरोगी होता है ,व्यर्थ भाषण करने वाला, मुर्ख के साथ क्रोधी, उद्र्रोगी, एवं कामी  होता है! 
नवम भाव-->जातक की कुंडली मे राहू नवम भाव मे जातक को तीर्थ करने वाला एवं धर्मात्मा बनाता है !परन्तु इसके  विपरीत परिणाम भी  देता है! प्रवासी वातरोगी व्यर्थ परिश्रमी के साथ दुष्ट प्रवति का बनाता है !  

Tuesday, December 21, 2010

kundli me rahu ka hdsh bhavo me fal

                प्रत्येक जातक कि कुंडली मे ग्रह,स्थान ( भाव ) अनुसार जातक को फल देते है ! एवं विजय यश ,सम्मान, कीर्ति के साथ अपयश, अपव्यय, विनाशकारी बुध्दि, कीर्ति का ह्रास इस प्रकार दोनों तरह के फल देते
है! यह सब निर्भय करता है, ग्रह जातक कि लग्न कुंडली में किस भाव में बैठा है ! जानिये राहू के अलग -अलग
भाव में फल!
प्रथम भाव में ( लग्न )-->राहू यदि जातक कि कुंडली में प्रथम भाव में बैठा है, तो जातक को दुष्ट, मश्तक का रोगी , श्वार्थी एवं राजध्देशी के साथ नीच कर्म करने वाला, दुर्बल एवं कमी बनाता है!
ध्दितीय भाव में --> राहू जातक कि कुंडली में ध्दितीय भाव में बैठा है, तो जातक परदेश जाकर कमाता है! अल्प-
संतति, कुटुंब- हीन के साथ भाषा कठोर रहती है, धन का कम आगमन होता है (अल्प धनवान ) परन्तु समूह करने
कि आदत जातक में रहते है!

Monday, December 13, 2010

kundli me chturth bhav

                 जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव घर, वाहन, माता व सुख भाव का होता है ! इसी भाव से अंचल
       सम्पत्ति , भोतिक सुख सुविधा , तालाब , बावड़ी व घर का वातावरण जान सकते है ! इस भाव
       में विभिन्न प्रकार के सुख को जानिए गृह की उपस्थिति एवं उनकी द्रष्टि से !
१.    चतुर्थ भाव में बुध स्थित है एवं इसी भाव में शुभ ग्रहों की द्रष्टि पड़ रही है ! तो राजयोगी योग
       बनता है तथा जातक के घर में अनेक नोकर चाकर रहते है !
२.    चतुर्थ भाव में कारक गृह चन्द्रमा विराजमान है एवं यदि वह उच्च का या स्व राशी पर विराजमान
       है ! तथा उच्च ग्रहों की द्रष्टि इस भाव पर पड़ रही है तो जातक को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते
      है ! 
३.   इस भाव में सूर्य शुभ नही माना गया है ! नीच सूर्य जातक को धनहिन , भूमिहीन बना देता है तथा 
      बार-बार जातक का स्थान परिवर्तन होता है ! सिंह का सूर्य इस भाव में शुभ होता है ! 
४.   चतुर्थ भाव में चंद्रमा स्थित होने पर एवं शुभ ग्रहों के द्रष्टि पड़ने पर साथ में शुक्र पर चन्द्रमा की
      द्रष्टि पड़ने पर जातक के पास अनेक वाहन होते है !
५.   चतुर्थ भाव में यदि राहू  केतु विराजमान है जातक को धार्मिक प्रवत्ति का बना देते है ! ये चतुर्थ
       भाव में मोन रहते है !
६.    शनि का चतुर्थ भाव जातक को वृद्धावस्था में चीड़ - चिड़ा एवं प्रिय या सन्यासी बना सकता है ! 
       एवं नीच का शनि भिखारी जेसी हालत कर सकता है !
७.    चतुर्थ भाव का शुक्र शुभ ग्रहों की द्रष्टि जातक को भोतिक सुख देता है ! कभी कभी ऐसे जातक
        का भाग्य  शादी के बाद उदय होता है !
८.     चतुर्थ भाव में मंगल जातक को अपराधी प्रवृति का बना देता है ! एवं सब कुछ तबाह कर देता है ! इसकी
       शांति अवश्य करना चाहिए ! ( जिन जातको रहे )
९.    चतुर्थ भाव में उच्च का वृहस्पति होना एवं शुभ ग्रहों की द्रष्टि उस पर पड़ रही हो तो जातक को राज्य से धन
       प्राप्ति का योग बनता है एवं उच्च पद पर विराजमान होता है ! नीच का गुरु परिवार एवं भाई से द्वेष या
       दुश्मनी करा सकता है !