नव-बर्ष २०६८ शक: १९३३ ज्योतिष की नजर से -->संसार की उत्पति के साथ ही परिवर्तन जुडा हुआ है! स्रष्टि के रचयिता ने भी समय -समय पर इस स्रष्टि की रचना में परिवर्तन किये! बिष्णु जी ध्दारा स्रष्टि की रचना का आदेश ब्रम्हा जी को मिला, ओर उन्होंने स्रष्टि की रचना की!
समय के साथ युग परिवर्तन हुआ! सतयुग,त्रेतायुग, ध्दापर-युग एवं राजा परिझित के शरण में याचक बनकर कलयुग ने प्रवेश किया!
कलयुग की अबधि (उम्र) प्रारम्भ से ५११२ बर्ष पूर्ण क्र चुकी है! पिछला बर्ष २०६७ शक: १९३२ व्यतीत हो रहा है ! नया
बर्ष बिक्रम संवत २०६८ शालिवाहन शक: १९३३ फसली सन १४१८/१९ बंगला सन १४१८ ईसवी सन २०११-२०१२ हिजरी सन १४३२/३३
प्रारम्भ हो रहा है! प्रत्येक व्यक्ति ने सम्वत्सर (नया बर्ष) के प्रारम्भ के दिन प्रात: काल उठकर स्नान करके मकान को स्वच्छ करके
केले के खम्भे,वन्दनवार पताका आदि सुशोभित करना चाहिए! एवं पुरे कुटुंब सहित नविन वस्त्र धारण-कर अपने इष्ट देवता का पूजन करना चाहिए, तथा पंचाग का पूजन करना चाहिए! इसके बाद कालीमिर्च,निम् की पत्ति,मिश्री,अजवाइन एवं जीरा का चूर्ण बनाकर खाना चाहिए!
इस दिन अपने से बढो को गुरु, माता,पिता,दादा,दादी एवं ओर पूज्यनीय व्यक्तियों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेना चाहिए! एवं मन में संकल्प
लेना चाहिए की हम अच्छे मार्ग पर चलते हुए प्रभु स्मरण करते रहे! एवं हमारा नवबर्ष सुखमय रहे!
इसी दिन से माँ भगवती राज राजेश्वरी दुर्गा देवी के दिन अर्थात नवरात्री प्रारम्भ हो जाती है! अत: उनकी आराधना नो दिन करना चाहिए! जो नवदुर्गा के नो रूप को स्मरण करता है,वह पूर्ण आनद सुखमय जीवन व्यतीत करता है!
उसकी अकाल मोत नही होती है! (दुर्घटना से, जलकर,सर्प के काटने से) एवं भगवती अपने शरण में ले लेती है!
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