कालसर्प कब होता है --> प्रत्येक जातक की कुंडली में नॉ ग्रहों की स्थिति अलग -अलग स्थान पर विराजमान होती है! राहु-केतु भी प्रत्येक की कुंडली में विराजमान रहते है!
जातक की कुंडली में जब सारे ग्रह राहु और केतु के मध्य में आ जाये,तब कालसर्प होता है! क्यों होता है, जानिए !
वैद के अध्ययन पर विचार करे, तो राहु का अधिदेवता काल ओर प्रति
अधिदेवता सर्प है,जबकि केतु का अधिदेवता चित्रगुप्त एवं प्रति अधिदेवता ब्रम्हाजी है! इस पर ध्यान दे,या यह
कहे , कि राहु का दाहिना भाग काल एवं बायाँ भाग सर्प है! इसीलिए राहु से केतु की ओर कालसर्प योग बनता
है,केतु से राहु की ओर से कालसर्प नही बनता है! राहु एवं केतु की गति बाममार्गी होने से स्पष्ट होता है, कि सर्प अपने बाई ओर ही मुड़ता है,वह दाई ओर कभी नही मुड़ता ! राहु एवं केतु सर्प ही है,और सर्प के मुँह में
जहर ही होता है ! जिन जातको की कुंडली में कालसर्प होता है,उनके जीवन में असहनीय पीड़ा होती है! कई
कालसर्प योग वाले जातक असहनीय पीड़ा झेल रहे है!और कुछ जातक सम्रध्दी प्राप्त कर आनन्द की जिन्दगी
जी रहे है! इससे यह सिध्द होता है,कि राहु -केतु जिस पर प्रसन्न है,उसको संसार के सारे सुख सहज में दिला देते है! एवं इसी के विपरीत राहु -केतु (सर्प)
कोर्धित हो जाहे,तो मृत्यु या मृत्यु के समान कष्ट देते है! श्रष्टि का विधान रहा है,जिसने भी जन्म लिया है,वह
मृत्यु को प्राप्त होगा! मनुष्य भी उसी श्रष्टि की रचना में है, अत:मृत्यु तो अवस्यभावी है!उसे कोई नही टाल
सकता है परन्तु मृत्यु तुल्य कष्ट ज्यादा दुखकारी है! जो व्यक्ति आर्थिक सम्पन्नता के मद में चूर हो जाता है,
जिसके कारण वह माता-पिता अपने आश्रित भाई,बहन का सम्मान करके नही,बल्कि अपनी सेवा करवाकर खुश रहना चाहता है!
एवं उन्हें मानसिक रूप से दुखी करता है, उसी के प्रभाव के कारण उसे अगले जन्म में कालसर्प होता है!
शास्त्रानुसार जो जातक अपने माता -पिता एवं पितरो की सस्चे मन से सेवा करते है, उन्हें कालसर्प योग अनुकूल प्रभाव देता है! एवं जो इन्हे दुःख देता है,कालसर्प योग उन्हें कष्ट अवश्य देता है!
कालसर्प के कष्ट को दूर करने के लिए कालसर्प की शांति अवश्य करना चाहिए ! एवं शिव आराधना करना चाहिये !
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