मनुष्य के जीवन में कई प्रकार के उतार-चढाव आते है!,जीवन की शुरुवात बचवन से होती है, फिर शिक्षा, शिक्षा अर्जित करने के बाद अपने कर्तव्यो की पूर्ति के लिए वह सर्विस या व्यापार करता है! सुचारू -रूप से अपने कर्तव्यो की पूर्ति के लिए के लिए उसे एक जीवन - साथी की आवश्यकता होती है! जीवन की यह शुरुवात सामान्यता: माता-पिता अथवा पालक या जो भी जिम्मेदार घर में होता है, उसके ध्दारा रिश्ता तय कर शादी कर दी जाती है! कभी- कभी ये रिश्ता मनपसन्द शादी (लव मेरिज) से भी हो जाता है, इस योग में मनुष्य की कुंडली बहुत महत्वपूर्ण होती है!
जानिए !
जिस जातक (मनुष्य ) की कुंडली वृषभ लग्न,कर्क लग्न, तुला लग्न, मेष लग्न,वृश्चिक लग्न तथा कुम्भ लग्न वाली होती है, तो यह योग बनता है यदि ये लग्न वाली पत्रिका है तो उसमे पंचम भाव एवं सप्तम भाव का भी प्रभाव देखना होगा! क्योकि विवाह में पंचम भाव एवं सप्तम भाव का संबध होता है! यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव एवं सप्तम भव के स्वामी एक साथ बैठे हो, अथवा द्रष्टि संबंध हो ( एक दुसरे की द्रष्टि पर रही हो) तो प्रेम विवाह अवस्य होता है! क्योकि पंचम भाव प्रेम भावना का स्थान है तथा सप्तम भाव विवाह का स्थान है! इसी के साथ प्रेम विवाह के लिए मंगल -शुक्र,मंगल-शनि,चन्द्र शुक्र की युक्ति भी ये योग बनाती है !
No comments:
Post a Comment