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Friday, October 14, 2011

भगवान कृष्ण की भक्ति

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै वैदै: सांगपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्‍गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।

ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र और मरुतगण- दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते है, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगी जनध्यान में स्थित तद्‍गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुरगण (कोई भी) जिनके अंत को नहीं जानते उन (परमपुरुष नारायण) देवादिदेव को मेरा नमस्कार है।

कृष्ण, देवकीनंदन, यदुनंदन, गोपाल, नंदलाल, कन्हैया जो नाना प्रकार के नामों से भजें जाते हैं ऐसे विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का जन्म भादौ कृष्‍ण की अष्टमी को हुआ।  कृष्ण की भक्ति गोपियों जैसी विशुद्ध मन से की जानी चाहिए। गोपियां कृष्ण को नि:स्वार्थ प्रेम करती थी। सखा अर्जुन जैसे बनने की कोशिश करनी चाहिए।

जिन्होंने कृष्ण को सखा एवं ईश्वर दोनों रूपों में मान दिया और अनन्य विश्वास से अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया। निश्चित ही यदि आप सच्चे चित्त से कृष्‍ण भक्ति करते हैं, तो वह (कृष्ण) आपके सारे दुख-दर्द और पाप को हर लेते हैं एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।

भगवान कृष्ण स्वयं कहते भी हैं-
मनुष्याणां सहस्त्रेषु कश्चिधतति सिद्धये।
यत् तामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेन्ति तत्वत:।।

हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको यथार्थ रूप में जानता है।

उनका कहना है कि जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूं।

परंतु भगवान कृष्ण की भक्ति किसी भी रूप में की जाए, ध्यान करके, भजन करके, जाप करके अथवा मानसिक, सच्चा भक्त उनको अवश्‍य प्राप्त‍ करता है।

स्वयं कृष्‍ण कहते है- मेरे भक्त मुझे चाहे जैसे ही भजे, अंत में मुझको ही प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य जिस भाव से स्मरण करता है वह अवश्‍य ही प्रभु को उस रूप में पाता है।

मन्मना भव मभ्दक्तो मघाजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यासि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:।।

अर्थात् मुझमें मन लगा, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें स्थापित करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा।
 



गणेश आराधना

पं. सुरेंद्र बिल्लौरे

एह्येहि हेरंब महेशपुत्र समस्त विघ्नौद्या विनाशदक्ष
मांगल्य पूजा प्रथम प्रधान गृहाण पूजां भगवन नमस्ते।।

हे महेशपुत्र समस्त विघ्नों के विनाश करने वाले देवाधिदेव मांगल्य कार्यों में प्रधान प्रथम पूज्य गजानन, गौरी पुत्र आपको नमस्कार है।

गजानन, गौरी पुत्र, महेश पुत्र, एकदंत, वक्रतुंड, विनायक, लंबोदर, भालचंद्र ऐसे नाना प्रकार के नामों से पूज्य श्री गणेशजी की आराधना जो भक्त भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक करता है। उस भक्त के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्‍ट हो जाते हैं एवं उसकी हर मनोकामना गणेशजी पूर्ण करते है।

जितने भी ग्रह-नक्षत्र, राशियां है उनको गणेशजी का अंश माना गया है। यह सत्य है। मन, कर्म, वचन से जो गणेशजी की आराधना करता है, अनुष्‍ठान करता है, उस पर गणेशजी की विशेष अनुकंपा होती है।

गणेशजी की आराधना विद्यार्थी विद्या प्राप्ति के लिए करें, जिसको धन पाना है वह धन प्राप्ति के लिए, मोक्ष पाने वाला मोक्ष प्राप्ति के लिए, पुत्र की कामना वाले व्यक्ति पुत्र प्राप्ति के लिए करें, रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश सभी प्रकार के भक्तों की इच्छा अवश्‍य पूर्ण करते हैं। भगवान गणेश की आराधना सच्चे मन से करने पर हर मनोरथ पूर्ण होंगे।

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्
प‍ुत्रार्थी लभते पुत्रान्, मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

देवताओं के भी पूज्य गजानन जी को यक्ष, दानव, किन्नर जो भी पूजता है। वह सुख-संपदा, राज्य भोग, सब प्राप्त कर लेता है। यदि मनुष्य सच्चे दिल से गौरी पुत्र का स्मरण करें तो अवश्य ही समस्त सिद्धियों का ज्ञाता एवं पराक्रमी होता है। श्री गणेश जी के स्त्रोत को जो नित्य जपता है, वह अवश्‍य ही वांछित फल पाता है। इसमें संशय नहीं है।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये
नम: प्रथमपतये नमोस्तेतु लंबोदरायैकदन्ताय
विघ्नविनाशिने शिवसुताय श्री वरदमूर्तये नमो नम: ।।

गजानन गणपति को बार-बार नमस्कार है। हे विघ्न विनाश करने वाले, लंबोदर, एकदंत, प्रथमपूज्य, शिवसुताय इस भक्त का प्रणाम स्वीकार करो। इस प्रकार गणेशजी से प्रार्थना करें। वह अवश्‍य आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे। 

Wednesday, October 12, 2011

अनंत चर्तुदशी

ं. सुरेंद्बिल्लौर

गणेश चतुर्थी से गणेशजी का दस दिवसीय उत्सव अनंत चर्तुदशी पर समाप्त होता है। अनंत स्वयं भगवान कृष्ण रूप है। भगवान कृष्ण से युधिष्ठिर पूछते है- श्रीकृष्ण ये अनं‍त कौन है? क्या शेष नाग हैं, क्या तक्षक सर्प है अथवा परमात्मा को कहते है।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं मैं वहीं कृष्ण हूं जो (अनंत रूप मेरा ही है) सूर्यादि ग्रह और यह आत्मा जो कहे जाते हैं। और पल-विपुल-दिन-रात-मास-ऋतु-वर्ष-युग यह सब काल कहे जाते हैं। जो काल कहे जाते है, वहीं अनंत कहा जाता है। क्योंकि ये निरंतर चलता रहता है।

मैं वहीं कृष्ण हूं जो पृथ्वी का भार उतारने के लिए बार-बार अवतार लेता हूं। आदि, मध्य, अंत कृष्ण, विष्णु, हरि, शिव, वैकुंठ, सूर्य-चंद्र, सर्वव्यापी ईश्वर तथा सृष्टि को नाश करने वाले विश्व रूप महाकाल इत्यादि रूपों को मैंने अर्जुन के ज्ञान के लिए दिखलाया था। अनंत चर्तुदशी पर प्रभु की ये प्रार्थना अत्यंत लाभदायक है।

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण-
स्त्वमस्य विश्वस्य परं विधानम्
वेन्तासि वेधं च परं च धाम
त्वया तवं विश्वमनंतरूपं।

अर्थात् आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं। आप इस जगत के आश्रयदाता, जानने योग्य और परम धाम है। हे अनंत रूप आपसे ही यह सब जगत व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है।

वायुर्यमोदग्निर्वरूण: शशांक:
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेस्तु सहस्त्रकृत्व:
पुनश्च भुयोपि नमो नमस्ते।।

अर्थात् आप वायु,यमराज, अग्नि, वरूण,चंद्रमा, प्रजा के स्वा‍मी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता है। आपके लिए हजारों बार नमस्कार है-नमस्कार है। आपके लिए पुन: बारंबार नमस्कार है।

हे अनंत सामर्थ्यवाले देव, आपको चारों दिशाओं से नमस्कार है। आपको आगे और पीछे से भी नमस्कार है, क्योंकि अनंत पराक्रमशाली आप, समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं।। अत: आप ही सर्वरूप है।

अनंत चतुर्दशी के दिन इस प्रकार प्रभु से प्रार्थना करके देखिए, अनंत देव आपके सारे कार्य संपन्न कर देंगे और प्रसन्न होंगे। जैसे, कौंडिल्य के अपराध को क्षमा कर प्रसन्न हुए थे।

अनंत चतुर्दशी की कथा :
सतयुग में एक सुमंत नाम का ब्राह्मण था। उसने अपनी कन्या शीला का विवाह विधि-विधानपूर्वक कौंडिल्य ऋषि से कर दिया। शीला ने अनंत चर्तुदशी पर पूजन कर कौंडिल्य को चौदह गांठ वाला (धागा) अनंत भुजा में बांध दिया, परंतु कौंडिल्य ने उस धागे का अपमान कर उसे आग में जला दिया। परिणामस्वरूप उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ा।

पूरे ब्रह्मांड में भटकने के बाद भी शरण नहीं मिली। अंत में बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर थोड़ा होश आने पर ह्रदय से अनंत देव को- हे अनंत! कहकर आवाज लगाई। तभी शंख चक्रधारी श्री भगवान ने स्वयं प्रकट होकर आशीर्वाद दिया, ऐसे हैं दयालु प्रभु।

उस अनंत भगवान के शरण में जाने से सर्वकार्य मनोरथ पूर्ण हो जा‍ते हैं। अनंत चर्तुदशी अपने आपमें भगवान स्वयं कृष्ण का दिवस है।

इति शुभम्।

Tuesday, October 11, 2011

निरोगी काया के टोटके

निरोगी काया के टोटके  
मोटापा घटाने का सरलतम टोटका
 
मनुष्य हमेशा नई ऊर्जा के साथ जीना चाहता है जिससे वह सदा प्रसन्न रह सके एवं उन्नति उसके कदम चूमे। नई ऊर्जा, नई उमंग के लिए स्वस्थ रहना परम आवश्यक है। अनेक विद्वानों ने, डॉक्टरों ने लिखा है, कहा है व्यक्ति बिना परेशानी के अपना मन किसी भी उद्‍देश्य को पूर्ण करने में लगा सकता है। हमारे यहाँ कहावत है

1. पहला सुख निरोगी काय
निरोगी काया को रखने के लिए अपनाएँ कुछ टोटके। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ आत्मा निवास करती है।

ज्वर (बुखार) नाश
यदि आपका ज्वर सारे उपाय कर लेने के बाद भी ठीक नहीं हो रहा हो, तो प्रभु पवनपुत्र हनुमान जी की शरण में जाएँ, क्योंकि उनकी कृपा से रोग नष्ट हो जाते हैं।
' नाशै रोग हरे सब पीड़ा'
अमावस्या या शनिवार के दिन सूर्यास्त के बाद हनुमान जी के मंदिर में पाकर प्रणाम करके उनके चरणों का सिंदूर ले आएँ। फिर ये मंत्र सात बार पढ़कर मरीज के मस्तिष्क पर लगा दें।

'मनो जबं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियय बुद्धिमतांवरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्‍यं श्रीरामदूत शरणं प्रवध्ये!'
ज्वर शीघ्र शांत हो जाएगा।

2. सफेद आँकड़े (मदार) की जड़ को लाकर स्त्री की बाईं एवं पुरुष की दाहिनी भुजा पर बाँध एक दिन छोड़कर आने वाला बुखार उतर जाएगा।

2. मोटापा घटाने के लि
मनुष्य के शरीर की सुंदरता आवश्यक है। उसको फूर्ति के लिए शरीर गठा हुआ एवं सामान्य चाहिए। परंतु कई लोगों को मोटापा घेर लेता है जो दुखदायी रहता है एवं मनुष्य भद्‍दा दिखने लगता है। ज्यादा मोटापा कई बीमारी भी उत्पन्न करता है। मोटापा कम करने के लिए सरलतम टोटका अपनाएँ। रविवार के दिन अनामिक अँगुली में काला धागा बाँध ले। एवं उसको राँगे की अँगूठी से ढँक लो। अर्थात् पहन लो। आपको आश्चर्य होगा, मोटापा धीरे-धीरे कम हो जाएगा।

3. भूख बढ़ाने के लि
मनुष्य को स्वस्थ रहने के लि
एवं जल तुरंत पी जाएँ। आपको भूख लगने लगेगी। अनुभवी टोटका है।

4. दस्त लगने प
अधिक दस्त लगने पर सहदेई की जड़ को लाकर उसके सात टुकड़े कर लें। ये ध्यान रहे टुकड़े बराबर-बराबर हों, फिर उसकी माला बनाकर कमर में बाँध लें। दस्त तुरंत बंद हो जाएँगे।
 

Monday, October 10, 2011

ग्रहों के अनुसार लहलहाती है फसलें

सुरेंद्र बिल्लौरे


ज्योतिष शास्त्र का उदय वहां से आरंभ होता है। जहां पर पाश्चात्य विज्ञान की समा‍प्ति होती है। ग्रह एवं नक्षत्रों का प्रभाव जीवधारियों पर तो क्या, वन‍स्पति तक भी अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।

* हमारे दैनिक जीवन में ज्योतिष विज्ञान का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान है। चंद्रमा का सीधा प्रभाव वनस्पतियों पर पड़ता है। जो फसलें धरती के अंदर (फल) से उत्पन्न होती है, अथवा जिनके फल धरती के अंदर लगते हैं जैसे आलू, शकरकंद, जमीकंद ऐसी फसलें कृष्‍ण पक्ष में बोने से अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है। अगर यही फसल शुक्ल पक्ष बोई गई हो तो कम उपज होती है।

* ऐसे ही जो फसलें धरती के ऊपर होती है, जैसे कि गेहूं, चना, मटर, धान, ईख इन फसलों को शुक्ल पक्ष में बोने से ज्यादा उपज होती है। अलग-अलग पक्ष में बोने वाली फसलों को समान मात्रा में खाद, मिट्‍टी, पानी देने पर भी उत्पादन में अंतर आएगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। ग्रहों की अनुकूलता का प्रभाव जल के कमल एव कुमुदिनी पर भी स्पष्‍ट देख सक‍ते है।

* कमल के लिए सूर्य अनुकूल रहता है। जबकि कुमुदिनी के लिए चंद्रमा का अनुकूल रहना लाभप्रद है। अर्थात् ग्रहों का प्रभाव वनस्पति पर कितना पड़ता है यह आप प्रत्यक्ष देख सकते हैं।

* इसी प्रकार अलग-अलग नक्षत्रों में होने वाली वर्षा वनस्पति पर अलग-अलग प्रभाव डालती है। विशाखा में होने वाली वर्षा का जल वन‍स्पतियों के लिए विष समान है, परंतु स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा का जल वनस्पति के लिए अमृत तुल्य है।

यह अनुभव दर्शाते हैं कि हमारे जीवन में ग्रहों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कितना प्रभाव है एवं प्रकृति पर इनका कितना महत्वपूर्ण प्रभाव है। ज्योतिष विज्ञान पाश्चात्य विज्ञान से कितने कदम आगे है। आप स्पष्ट समझ सकते हैं।

हिन्दू माह का ज्योतिष आधार

हिन्दू धर्मानुसार महीनों के जो नाम रखे गए हैं उनसे मौसम की ऋतुएं जुड़ीं है। इन सबका ज्योतिषीय आधार है। उसी से संबंधित है नक्षत्रों का नामकरण। पेश है इसी से जुड़ी रोचक जानकारी।

चंद्रमा के महीनों में पहला महीना चैत्र आता है। द‍ेखिए प्रमाण- इसकी पूर्णिमा को हमेशा चित्रा नक्षत्र ही आता है।

दूसरा महीना बैसाख कहलाता है, इसकी पूर्णिमा पर बिशाखा नक्षत्र रहता है।

ज्येष्ठ की पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र आता है।

आषाढ़ की पूर्णिमा को पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा दो नक्षत्रों में से एक रहता है।

श्रावण की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र रहता है।
भादो (भाद्रपद) की पूर्णिमा को भाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र रहेगा।

अ‍ाश्विन माह की पूर्णिमा को अ‍ाश्विनी नक्षत्र कहलाता है।

कार्तिक माह की पूर्णिमा को कृतिका नक्षत्र।

मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को मृगशिरा नक्षत्र।

पौष माह की पूर्णिमा को पुष्‍य नक्षत्र।

माघ की पूर्णिमा को मघा नक्षत्र।

फाल्गुन की पूर्णिमा को पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा।

चैत्र की पूर्णिमा से फाल्गुन तक आपने देखा हर महीने का नाम और नक्षत्र का विलक्षण संयोग।

Saturday, October 8, 2011

प्रत्येक व्यक्ति को धन की आवश्यकता होती है. धन के बिना अनेक कम रुक जाते है! धन कमाने एवं कर्ज 
से छुटकारा पाने के लिए करे,दीपावली पर कुछ खास प्रयोग !


इस प्रयोग को पूर्ण पवित्रता से करने पर लाभ अवश्य मिलता है। लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। धन की वर्षा होती है। रूका पैसा तो मिलता ही है आय के नए-नए साधन भी जुटने लगते हैं। सबसे पहले पूरी शुद्धता से नीचे दिए गए मंत्र की पहले 108 बार माला करें।

महालक्ष्मी मंत्र -
'ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नम:'
    माला करने के बाद महालक्ष्मी को सहद का भोग लगाये ! आपके यहा किसी प्रकार की कमी नही रहेगी !

Thursday, October 6, 2011

दशहरे की शुभकामना !

एक सीता के हरण से गया था रावण मारा ,आज सीता का हरण रोज हुआ करता है! 
 उस समय रावण ध्दारा सीता के हरण करने पर राम ने रावण का बध कर दिया! आज इस प्रकार का काम ना
हो, संकल्प लेना चाहिए ! सही दशहरा यही है!  यही आशा के साथ सबको दशहरे की शुभकामना !

happy dashhara

सभी दोस्तों को, पाठको को दशहरे की शुभकामना !

Monday, October 3, 2011

अक्टूवर २०११ ज्योतिष की नजर से

इस माह सूर्य का कन्या राशि में परिभ्रमण करने से उत्तर के देशो में युद्ध का भय होने से अशांति के योग बनते है। पूर्व तथा दक्षिण के देशों में पीड़ा होने की संभावना है। मंगल (भौम) का कर्क राशि में परिभ्रमण करने से चोरों का भय, आपसी (जनता व सरकार) विरोध होगा। अशुभ फलों की अधिकता रहेगी। शासक निर्बल होंगे।

'कन्या राशि गते ज्ञे हि कांचनं शुद्ध कर्करा।' बुध के कन्या राशि में परिभ्रमण करने से शक्कर एवं सोने के व्यापारी को लाभ होगा। दोनों वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे। ये स्थिति छ: माह तक रह सकती है, फिर भाव घटेंगे।

शुक्र का कन्या राशि में भ्रमण का प्रभाव सीधा कृषि पर पड़ेगा। खेती में फसल का नाश होता है। सभी प्रकार के अनाज महंगे होने के योग बनते है। शनि का कन्या राशि में परिभ्रमण करने से मध्यप्रदेश सरकार को सीधा असर पड़ेगा एवं जल पर भी सीधा असर पड़ेगा। पानी के शोषण होने के योग बनते है। इसी के साथ तेज वायु के योग बनते है।

बुध का 11 अक्टूबर को तुला राशि में प्रवेश करने से वर्षा में प्रभाव पड़ेगा एवं पृथ्वी पर क्लेश, अशांति होने की प्रबलता बढ़ेगी। युद्ध का भय बनता है।

4 सितंबर को शुक्र अपनी राशि तुला में प्रवेश करने से शांति एवं आरोग्यता होगी। सूर्य का भी राशि परिवर्तन कर तुला राशि में मध्य माह से प्रवेश होने के प्रभाव से पूर्व के देशों में सुभिक्ष आदि का सुख होगा, दक्षिण तथा पश्चिम के देशों में दुर्भिक्ष का भय, उ‍त्तर के देशों में युद्ध का भय व अशांति होगी।

इस माह सूर्य-बुध-शुक्र के एक ही राशि पर स्थित होने से वर्षा कम होगी। सभी अनाजों के भाव तेज होंगे। इस माह चर्तुग्रही योग बन रहे हैं। इसके प्रभाव से कहीं रक्तपात, कहीं प्राकृतिक प्रकोप की संभावना बनती है।

अक्टूबर माह की कुंडली में ग्रह गोचर पर आकाशीय मंडल के योग से दृष्टि डाले तो सूर्य-बुध एवं शुक्र के एक साथ बैठने से एवं शनि के सूर्य के पीछे होने से कुछ भागों में पानी की कमी, वर्षा का अवरोध होगा। कहीं तेज वायु के साथ छिटपुट बूंदाबांदी होगी।

ऋतु परिवर्तन के लक्षण दिखाई देंगे। शीत में वृद्धि होगी एवं रात्रि के तापमान में गिरावट आएगी। पर्वतीय क्षेत्रों में छिटपुट बूंदाबंदी होगी तथा शीत बढ़ेगी। मैदानी भागों में परिवर्तन आएंगे। तेज आंधी, तूफान से जनजीवन अस्त-व्यस्त होने की संभावना बनती है।

Sunday, October 2, 2011

mantr ka upyog

mantra

                                                              ग्रह रक्षा मंत्र
                 ॐ ह्रीं चामुंड भ्रकुटी अट्टहासे भीम दर्शने रक्ष रक्ष चोरे:  वजुवेभ्य: अग्रिभ्य : स्वापदेभ्य: दुष्ट -
                                          जनेभ्य: सर्वेभ्य सर्वोपद्रवेभ्य गंडी ह्रीं हो ठ: ठ !
             इस मंत्र को १०८ बार पढ़कर मकान के चारो तरफ रेखा खीच देने से वह घर दुष्ट आत्माएं , भूत ,
 प्रेत ,चोर , डाकू तथा दुष्ट व्यक्ति या हिंसक जन्तुओ के प्रवेश का भय , बिजली गिरने व आग लगने का भय तक भी नही रहता ! किसी शुभ तिथि घड़ी नक्षत्र या चन्द्र ग्रहण सूर्य ग्रहण में दस हजार बार पाठ करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है !
                                ति मोहन  मंत्र
                          ॐ अस्य श्री सुरी मंत्र स्वार्थ वर्ण ! ऋषि इति शिपस स्वाहा !
           जिस स्त्री का पति उससे संतुष्ट न रहता हो उस स्त्री को निम्न मंत्र का १०८ बार प्रतिदिन नियम से जाप
करते हुए १०८ दिन तक पाठ करना चाहिए ! इससे पति पत्नी पर आकर्षित होगा तथा दोनों का जीवन आनन्दमय
हो जायेगा !
                               सरस्वती आकर्षण मंत्र
                                                 ॐ वाग्वादिनी स्वाहा मिन्सहरा !
                इस मंत्र को किसी भी शुभ तिथि में प्रात: उठकर नहा-धोकर पवित्र होकर सवा लाख बार जाप करने से
 देवी सरस्वती आकर्षित होकर विद्या दान देती है !
                        उपरोक्त मंत्र पूर्ण श्रद्धा के साथ करे पूर्ण लाभ होगा !

meen--ka--svbhav

meen--ka--svbhav

          राशी के प्रथम चरण में मेष एवं अंतिम चरण में मीन आता है! पूर्वाभाद्रपद के अंतिम चरण से रेवती नक्षत्र
के अंतिम चरण तक मीन राशी बिधमान रहती है! इस राशी का स्वामी गुरु है!
          इस लग्न में जन्म वाला जातक लग्न का स्वामी शुभ होने पर  सुंदर, रूपवान,धनी, ईमानदार अपने कार्य में
निष्ठां रखने वाला एवं कार्य क्षेत्र में माननीय पद पर पहुँचने वाला एवं सीधे स्वभाव वाला जरूरत मंद व्यक्ति की मदद
करने वाला होता है, एवं लेखक या कवि बनाने के योग बनते है! परन्तु लग्न में क्रूर ग्रह स्थित हो, या उसकी द्रष्टि
पड़ रही हो,तो जातक मादक द्रव्य लेने बाला या व्यभिचारी शराबी हो सकता है, अथवा होने के प्रबल योग रहते है!
लेखक, दुसरो की हमेशा सहायता करने वाला, गुप्त बिधा का ज्ञाता, देश भक्ति रखने वाला  व्यक्ति इसी लग्न में
पैदा होता है! इस लग्न के जातक समाज सेवी, राजनीती, तथा स्वास्थ्य सेवा में नर्स की नॉकरी करना ज्यादा पसंद
करते है!
          लग्नेश गुरु  तीसरे भाव में हो, तो भैयो की संख्या ज्यादा एवं बारहवे भाव में हो, तो पिता से सहयोग की सम्भावना बड़ती है!
        मीन लग्न में  उत्पन्न जातक की कुंडली में सातवे भाव में शनी या शुक्र की द्रष्टि पड़ जाये, तो तो पत्नी से तलाक होने संभावना बड़ जाती है!
        मीन लग्न में यदि शुक्र उच्च का हो तो व्यक्ति संगीत में रूचि रखने वाला, कलाकार बनाता है!
         मीन लग्न की कुंडली में मंगल बारहवे भाव में होने पर या उसकी दशा महादशा आने पर  किसी भी विभाग या
   देश का शासक बनाता है! परन्तु यदि शनी की द्रष्टि पड़ रही हो, तो जेल भिजवा सकता है!
         लग्नाधिपति गुरु यदि पंचम भाव में विराजमान हो, तो अनेक प्रकार की यात्रा करवाता है, एवं गुरु महादशा में उच्च पद पर पहुँचाता है!
         इस लग्न में बुध अच्छा नही होता है, इसकी (बुध) की महादशा में स्थान परिवर्तन कराता है! यदि बुध व्यय भाव में बैठा है, तो ग्रहस्थी में स्वास्थ्य खराब, मित्र, परिवार से झगडा करा सकता है!
      मीन लग्न वालो ने पुखराज धारण करना चाहिए!

      इति शुभम
 

अक्टूम्बर माह २०११ ध्दाद्श राशियों का फलादेश

मेष : मेष राशि वाले जातकों के लिए अक्टूबर का माह धर्म के लाभ वाला रहेगा। स्वास्थ्य में सुधार होगा। इस माह लंबी यात्रा के योग बनते हैं। शत्रु पक्ष से समझौता मिलेगा। पारिवारिक लोगों से पूर्ण सहयोग मिलेगा। किसी मित्र की सहायता से सारे कार्य पूर्ण होंगे। पत्नी का स्वास्थ्य नरम-गरम रहेगा। कृषि लाभ मिलेगा। व्यापार मध्यम रहेगा। दिनांक 3, 20, 29 शुभ है। दिनांक 6 अशुभ है। शिव शक्ति की आराधना शुभ रहेगी।

वृषभ : वृषभ राशि वाले जातकों के लिए यह माह शत्रु पक्ष पर विजय वाला रहेगा। विद्यार्थी की शिक्षा में सुधार होगा। पत्नी के पक्ष में स्थिति चिंता वाली रहेगी। राज्य कार्य से हानि की संभावना है। नौकरी में सब ठीक रहेगा। व्यापार अच्छा रहेगा। दिनांक 11, 15 शुभ है। 5 अशुभ है। दुर्गा आराधना लाभदायक रहेगी।

मिथुन : मिथुन राशि वाले जा‍तकों के लिए यह माह धन लाभ वाला रहेगा। स्वास्थ्य सुधार होगा। शत्रु पक्ष पर विजय मिलेगी। स्थान परिवर्तन से विशेष लाभ मिलेगा। वाहन सावधानी से चलाएं, दुर्घटना के योग बनते है। दिनांक 6,18 शुभ। 9 अशुभ रहेगी। राधा-कृष्‍ण की आराधना करें।

कर्क : कर्क राशि वाले जातकों के लिए यह माह पारिवारिक सुख वाला रहेगा। विद्यार्थी को रूकावट के योग बनते है। शत्रु पक्ष प्रबल हो सकता है, ध्यान दें। माता को कष्ट के योग। व्यापार मध्यम रहेगा। कृषि लाभ होगा। नौकरी में अधिकारी खुश रहेंगे। दिनांक 6, 12 शुभ, 6 अशुभ है। रामरक्षा स्त्रोत लाभप्रद है।

सिंह : सिंह राशि वाले जातकों के लिए यह माह मिश्रित फल वाला रहेगा। स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। शत्रु पक्ष से भय रहेगा। व्यापार मध्यम रहेगा। नौकरी में उन्नति के योग बनते हैं। कृषि सामान्य रहेगी। यात्रा में नुकसान के योग बनते है, ध्यान दें। चोट इत्यादि की संभावना बनती है। मित्र से सहयोग मिलेगा। दिनांक 2, 11 शुभ है। 14 अशुभ है। देवी आराधना शुभ है।

कन्या : कन्या राशि वाले जातकों के लिए यह माह भाई की उन्नति वाला रहेगा। साथ ही बहन की उन्नति के योग भी बनत‍े है। शारीरिक सुधार होगा। संगति का ध्यान दें। हानि के योग बनते है। व्यापार सामान्य रहेगा। नौकरी में अधिकारी अप्रसन्न हो सकते हैं। स्त्री से पूर्ण सहयोग मिलेगा। दिनांक 5, 18 शुभ। 22, 29 अशुभ है। राधा-कृष्‍ण की आराधना लाभप्रद रहेगी।

तुला : त‍ुला राशि वाले जातकों के लिए यह माह धर्म पर खर्च वाला रहेगा। खुद के स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो सकती है। आर्थिक खर्च होगा। पत्नी के पक्ष से विरोध होगा। व्यापार में लाभ मिलेगा। कृषि लाभ देगी। नौकरी में उन्नति के साथ प्रमोशन होने के योग है। दिनांक 1, 14 शुभ एवं 20, 26 अशुभ है। श्रीराम ‍भक्ति लाभ देगी।

वृश्चिक : वृश्चिक रा‍‍शि वाले जातकों के लिए यह माह परिवार में आर्थिक मजबूती वाला रहेगा (आय में वृद्धि होगी)। अपना ध्यान रखें, सिर संबंधी चोट की संभावना है। पुराने मित्र से सहयोग मिलेगा। व्यापार ठीक रहेगा। कृषि से हानि के योग, नौकरी में उन्नति होगी। दिनांक 7, 14 शुभ है। 9 अशुभ है। देवी आराधना लाभप्रद रहेगी।

धनु : धनु राशि वाले जातकों के लिए यह माह विद्यार्थी के लिए सफलता वाला रहेगा। रिटायर्ड कर्मचारी वर्ग की पदोन्नति के योग है। व्यापार अच्छा चलेगा। कृषि लाभ वाली रहेगी। नौकरी में अनबन होने के योग है। किसी की बात में आकर जीवन बर्बाद न करें। योग ठीक नहीं है। पत्नी से पूर्ण सहयोग रहेगा। दिनांक 4, 18 शुभ है। 23 अशुभ है। शिव शक्ति की आराधना लाभप्रद रहेगी।

मकर : मकर राशि वाले जातकों के लिए यह माह शुभ यात्रा वाला रहेगा। आय में वृद्धि होगी। शत्रु पर विजय प्राप्त होगी। पिता के स्वास्थ्य को लेकर चिंताजनक स्थिति रहेगी। दिनांक 1, 22, 29 शुभ है। 3 अशुभ। शिव आराधना करें।

कुंभ : कुंभ राशि वाले जातकों के लिए यह माह मिश्रित फल वाला रहेगा। अच्छे कार्यों से दूरी हो सकती है। पारिवारिक माहौल ठीक नहीं रहेगा। धार्मिक कार्यों के प्रति अविश्वास रहेगा। व्यापार ठीक रहेगा। कृषि से लाभान्वित होंगे। नौकरी सामान्य रहेगी। रिश्तेदारी में सतर्कता से काम लें। दिनांक 5, 18 शुभ है। 8 अशुभ। देवी भक्ति करें।

मीन : मीन राशि वाले जा‍तकों के लिए यह माह सामान्य लाभ वाला रहेगा। पत्नी के पक्ष से अनबन के योग बनते है। मित्रों से व्यवहार में सतर्कता रखें। विवाद के योग बनते है। व्यापार वृद्धि होगी। परंतु लाभ सामान्य रहेगा। कृषि के हानि के योग है। नौकरी में अधिकारी नाराज हो सकते हैं। दिनांक 6, 12, 24 शुभ है। 20 अशुभ। हनुमान जी की सेवा लाभप्रद है।